narayan ashram dharchula uttarakhand: सीमांत धारचूला तहसील के चौदास घाटी में स्थित है नारायण आश्रम, 1936 में कर्नाटक के संत नारायण स्वामी ने की थी स्थापना, जाने इसके बारे में विस्तार से….
narayan ashram dharchula uttarakhand
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आगामी 12 अक्टूबर को राज्य के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के साथ ही अल्मोड़ा एवं चम्पावत जिलों के प्रस्तावित दौरे के चलते धारचूला के चौदास घाटी स्थित नारायण आश्रम एकाएक राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आ गया है। आज हम आपको उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ की हसीन वादियों में स्थित इस आश्रम का ही इतिहास बताने जा रहे हैं। दरअसल अपने भ्रमण के दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का धारचूला के चौदास घाटी स्थित नारायण आश्रम में भी रात्रि विश्राम करने का संभावित कार्यक्रम है। जिससे न केवल राष्ट्रीय मीडिया में नारायण आश्रम के चर्चे हैं बल्कि लोग गूगल आदि सर्चिंग साइट्स पर भी लोग इसके बारे में पढ़ रहे हैं।
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आपको बता दें कि राज्य के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के धारचूला तहसील क्षेत्र के चौदास घाटी स्थित नारायण आश्रम की स्थापना वर्ष 1936 में कर्नाटक के संत नारायण स्वामी ने की थी। भगवान नारायण की मूर्ति स्थापित होने तथा संत नारायण स्वामी द्वारा निर्माण करने के कारण ही यह आश्रम नारायण आश्रम के नाम से जाना जाता है। उस समय संत नारायण स्वामी ने इसे सीमांत क्षेत्र की इस भूमि को हिमालय के इस ओर के कैलाश की संज्ञा दी। इस संबंध में लेखक डॉ. ललित पंत के मुताबिक वर्ष 1935 में कर्नाटक के एक संत नारायण स्वामी, कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर आए थे। वापसी में उनके मन में इस स्थान पर एक आश्रम बनाने का विचार आया। जिसको धरातल पर उतारने के लिए उनके शिष्यों में शामिल पं. ईश्वरी दत्त पांडे जैसे लोगों ने अग्रणी भूमिका निभाई। उनके तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर चौदास घाटी के सोसा के ग्रामीणों ने आश्रम के लिए भूमि दान देना स्वीकार किया। जिसके पश्चात 26 मार्च 1936 को आश्रम स्थापना का कार्य शुरू हुआ। सर्वप्रथम यहां पर एक कुटिया का निर्माण किया गया जिसमें तेजस्वी संत नारायण स्वामी ध्यान लगाते थे।
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तत्पश्चात 1939 में यहां पक्के भवन का निर्माण शुरू हुआ। जिसके लिए गंगानगर, बड़ौदा, अहमदाबाद, पूना, मुंबई के नारायण भक्तों ने धन दान दिया। इसके साथ ही यहां एक कीर्तन मंदिर भी बनाया गया। कई वर्षों के अथक परिश्रम से यहां वास्तुशिल्प की दृष्टि से दर्शनीय दो मंजिला भवन तैयार हुआ। जिसके बाद वर्ष 1946 में यहां भगवान नारायण की मूर्ति स्थापित कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा की गई। जिसके साथ ही यहां अन्नपूर्णा वाचनालय, कुटिया, गोशाला का निर्माण भी किया गया। संपूर्ण निर्माण कार्य पूर्ण होने के पश्चात नारायण स्वामी ने अपने लिए यहां एक पिरामिडिकल शून्यता कुटीर बनाई। जिसके साथ ही वह इस क्षेत्र में सनातन संस्कृति की अलख जगाने लगे। उनके इन प्रयासों से न केवल सनातन संस्कृति को बढ़ावा मिला बल्कि सामाजिक पुनरुत्थान और जनकल्याण के लिए आश्रम की गतिविधियां भी सुचारू रूप से संचालित होने लगी। जिसके बाद इन तेजस्वी संत ने वर्ष 1948 में यहां एक स्कूल की नींव रखी। यह स्कूल अस्कोट से पश्चिम की ओर चढ़ती पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है, जो आज भी यहां के नौनिहालों के भविष्य को उज्जवल बनाने में अपना अहम योगदान दे रहा है। तथा वर्तमान में यह नारायण नगर के नाम से जाना जाता है। जिसके बाद स्वामी यहां से रवाना हो गए और नौ नवंबर 1956 को 44 वर्ष की आयु में स्वामी कलकत्ता में ब्रह्मलीन हो गए।
(narayan ashram Pithoragarh uttarakhand)