Sita Chamyal uttarakhand board: सीता ने नियति की अग्नि परीक्षा भी की उत्तीर्ण, परिवार की विषम परिस्थितियों से जूझते हुए हासिल किया मेरिट सूची में नौवां स्थान, रोजाना 3 किमी० पैदल चलकर जाती थी स्कूल, घर के काम निपटाने के बाद रात में करती थी पढ़ाई….
Sita Chamyal uttarakhand board
उत्तराखण्ड बोर्ड के परीक्षा परिणामों में विषम परिस्थितियों से जूझते हुए काबिलियत का परचम लहराने वाले राज्य के होनहारों से हम आपको लगातार रूबरू करा रहे हैं। ये ऐसी खबरें हैं जो न केवल इन अभूतपूर्व सफलताओं को हासिल करने वाले छात्र छात्राओं के माता-पिता को गौरवान्वित करने का सुनहरा अवसर प्रदान कर रही है बल्कि विभिन्न बहानों पर असफलताओं का ठिकरा फोड़ने वाले देश प्रदेश के अधिकांश युवाओं को भी आईना दिखा रही है। आज हम आपको राज्य की एक और ऐसी ही बेटी से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने चार साल पूर्व मां को खोने के बाद न केवल खुद के साथ ही अपने पिता को संभाला बल्कि अब उत्तराखंड बोर्ड की इंटरमीडिएट परीक्षा के परिणामों में भी अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए प्रदेश की वरीयता सूची में 12वां स्थान हासिल किया है। जी हां…. हम बात कर रहे हैं मूल रूप से राज्य के अल्मोड़ा जिले के भैंसियाछाना विकासखण्ड के बमनस्वाल (धौलादेवी) की रहने वाली सीता चम्याल की, जिन्होंने 94.20% यानि 471 अंकों के साथ इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के साथ ही प्रदेश की मेरिट सूची में भी 12वें स्थान पर अपना नाम दर्ज कराया है।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार राजकीय इंटर कॉलेज नगरखान से पढ़ाई कर यह अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल करने वाली सीता की मां जया देवी का चार साल पूर्व निधन हो चुका है। मां का दर्जा हर किसी के जीवन में सबसे ऊंचा होता है। मां सबके सुख दुख की साथी होती है। ऐसे में मां के निधन के बाद अधिकांश लोगों की तरह सीता भी पहले तो बुरी तरह टूट गई। उस दौरान रह-रहकर सीता को मां की याद ऐसी सताती कि उनकी आंखों से अविरल अश्रुओं की धारा बहने लगती, जिसे देखकर उसके आसपास मौजूद लोग भी अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक पाते। वैसे भी छोटी उम्र में मां को खोने का दर्द वहीं महसूस कर सकता है जिन पर इस तरह की हृदयघाती दुखों का पहाड़ टूटा हों। लेकिन कुछ ही दिनों बाद सीता ने खुद को संभालते हुए अपने जीवन में कुछ बड़ा कर गुजरने का फैसला करते हुए मां को सच्ची श्रद्धांजलि देने का निश्चय किया। फिर क्या था, सीता जुट गई अपने भविष्य के सपनों में रंग भरने में। उन्होंने न केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया बल्कि वह स्कूल से लौटने के बाद घर के रोजमर्रा के कामकाज निपटाने के साथ ही खेतों में काम करती थी।
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बता दें कि रोजाना तीन किलोमीटर पैदल चलकर अपने नगरखान स्थित विद्यालय पहुंचने वाली सीता को घर के सभी काम निपटाने के बाद सिर्फ रात में ही पढ़ाई का समय मिलता था। परिवार की विषम परिस्थितियों से जूझते हुए भी उन्होंने हार नहीं मानी और रात की काली घटाओं में कापी के कोरे पन्नों पर स्याही से शब्द उकेरकर अपने भविष्य को एक नई दिशा देने लगी। बिना किसी ट्यूशन के रात-रात भर जागकर की गई इस कड़ी मेहनत से ही उन्होंने एक ऐसा मुकाम हासिल किया है जिसके खबर सुनने के बाद से ही जहां उनके पिता की खुशियों का ठिकाना नहीं है बल्कि इस गौरवशाली पल पर उनकी जुबां से यही शब्द बार-बार निकल रहे हैं कि बेटियां किसी पर बोझ नहीं होती। बताते चलें कि एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाली सीता चम्याल के पिता दीवान सिंह गांव में फेरी लगाकर सामान बेचने का कार्य करते हैं। अपनी सफलता का श्रेय विद्यालय के अध्यापकों तथा अपने पिता को देने वाली सीता भविष्य में एक शिक्षिका बनकर बच्चों के जीवन में भी उजियारे का रंग भरना चाहती है।