टिहरी जिले की रहने वाली सृष्टि रावत द्वारा निर्देशित हिंदी गढ़वाली फिल्म एक था गांव'(वंस अपॉन ए विलेज)(Ek THA Gaon movie) का मामी फिल्म महोत्सव के इंडिया गोल्ड श्रेणी में चयन..
देवभूमि उत्तराखंड के युवा आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपना परचम लहरा रहे हैं। बात अगर देश की बेटियों की ही कि जाए तो वह भी आज देश-विदेश में बड़े-बड़े पदों पर सेवाएं दे रही हैं। कुल मिलाकर उत्तराखंड की बेटियां आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं, राजनीति से लेकर मनोरंजन तक, शिक्षा से लेकर खेल के मैदान तक सभी जगह उत्तराखंड की बेटियो ने राज्य का गौरव बढ़ाया है। आज हम आपको राज्य की एक और ऐसी ही बेटी से रूबरू करा रहे हैं जिनके द्वारा निर्देशित फिल्म ने मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमे (मामी) फिल्म महोत्सव के इंडिया गोल्ड श्रेणी में जगह बनाई है। जी हां.. हम बात कर रहे हैं राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले की रहने वाली सृष्टि लखेड़ा की, जिनके द्वारा उत्तराखंड की सबसे बड़ी समस्या पलायन पर निर्देशित एक फिल्म ‘एक था गांव‘(वंस अपॉन ए विलेज)(Ek THA Gaon movie) है का चयन मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमे (मामी) फिल्म महोत्सव के इंडिया गोल्ड श्रेणी में हुआ है। सृष्टि की इस अभूतपूर्व उपलब्धि से पूरे क्षेत्र में हर्षोल्लास का माहौल है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि सृष्टि ने अपनी सोच और निर्देशन की कला के बलबूते न केवल समूचे राज्य का नाम रोशन किया है बल्कि पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या पलायन के मार्मिक दृश्य को भी पर्दे पर दिखाने की कोशिश की है।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड: पहाड़ की निर्मला छाई सिनेमा जगत में, अब ‘गुड्डन तुमसे न हो पाएगा’ में आएंगी नजर
पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या पलायन के कारण खाली होते गांवों पर आधारित है फिल्म की पृष्ठभूमि:-
बता दें कि उत्तराखंड की मुख्य समस्या पलायन से आज हर कोई वाकिफ हैं। जिसके कारण पर्वतीय क्षेत्रों में गांव के गांव खाली हो चुके हैं या गांवों में कहीं-कहीं कुछ बुजुर्ग ही बचे है। घोस्ट विलेज में तब्दील होते इन्हीं गांवों पर आधारित है सृष्टि के फिल्म ‘एक था गांव‘ की कहानी, जिसके लिए सृष्टि ने अपने गांव सेमला का ही चयन किया। इस विषय में पूछने पर उनका कहना था कि उनके गांव में भी पहले 40 परिवार रहते थे लेकिन किसी ना किसी कारणवश सभी पलायन करते रहे अब सिर्फ 5 परिवार ही गांव में बचे हुए हैं, सृष्टि कहती हैं कि गांव वालों को किसी ना किसी मजबूरी में ही गांव छोड़ना पड़ता है, जिनमें स्वास्थ्य शिक्षा और रोजगार प्रमुख हैं। इन्हीं मुख्य कारण को लेते हुए सृष्टि ने 1 घंटे की फिल्म निर्देशित की है, फिल्म में घोस्ट विलेज (पलायन से खाली हो चुके गांव) की कहानी है, जो हिंदी और गढ़वाली भाषा में बनी है। मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमे (मामी) फिल्म महोत्सव के इंडिया गोल्ड श्रेणी में शामिल होने के बाद सृष्टि द्वारा निर्देशित इस फिल्म का मुकाबला अब विभिन्न भाषाओं की चार फिल्मों के साथ हैं, परंतु कोरोना के कारण इस महीने मुम्बई में होने वाला फिल्म महोत्सव अब अगले वर्ष आयोजित होगा।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड हुआ गौरवान्वित, कोट गांव के सचिन इंडियाज टैलेंट सिंगिंग रियलिटी शो के लिए चयनित
यह है फिल्म की कहानी, जो दिखाती है कि गाँव के सभी लोग पलायन नहीं करना चाहते पर मजबूरीवस उन्हें अपना गांव छोड़ना ही पड़ता है:-
प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले के सेमला गांव निवासी सृष्टि लखेड़ा का परिवार वर्तमान में ऋषिकेश में रहता हैं। बताते चलें कि सृष्टि पिछले 10 सालों से फिल्म के क्षेत्र में है, उत्तराखंड की पलायन की पीड़ा को देखते हुए उन्होंने पावती शिवापालन (सह-निर्माता) के साथ इस पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया। उनके द्वारा निर्देशित इस फिल्म ‘एक था गांव‘ में दो मुख्य पात्र हैं जो गांव में रहते है, जो 80 वर्षीय लीला देवी और 19 वर्षीय किशोरी गोलू पर आधारित है। फिल्म की पहली पात्र लीला गांव में अकेली रहती है, इकलौती बेटी की शादी हो चुकी है बेटी मां को साथ देहरादून ले जाने की जिद करती है लेकिन लीला हर बार मना कर देती है। वह अपने गांव को छोड़ना नहीं चाहती क्योंकि उसे अपने गांव से बहुत लगाव था, वही फिल्म की दूसरी पात्र गोलू को गांव में अपना भविष्य नहीं दिख रहा था, वह भी अन्य लड़कियों की तरह अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी, एक दिन ऐसी स्थिति बनती है कि दोनों को ही गांव छोड़ना पड़ता है लीला अपनी बेटी के पास देहरादून चले जाती है जबकि गोलू उच्च शिक्षा के लिए ऋषिकेश चली जाती है। सृष्टि ने फिल्म के माध्यम से बताया है कि गांव छोड़ने के बाद भी लोगों के मन में गॉव लौटने की कशमकश चलती रहती है। गाँव के सभी लोग पलायन नहीं करना चाहते हैं पर मजबूरीवस उन्हें अपना गांव छोड़ना ही पड़ता है।