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उत्तराखण्ड: पहाड़ में तेंदुए का आतंक, जंगल में लकड़ियां लेने गई महिला को बनाया अपना निवाला

Uttarakhand: थम नहीं रहा पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले में आदमखोर तेंदुए का आतंक, अब जंगल में लकड़ियां लेने गई महिला पर हमला (Leopard attack) कर उतारा मौत के घाट..

पहाड़ में जंगली जानवरों का आतंक लगातार बढ़ता ही जा रहा है। आए दिन राज्य (Uttarakhand) के पर्वतीय क्षेत्रों से ग्रामीणों पर जंगली जानवरों के हमले की दुखद खबरें सामने आती रहती है। आज फिर राज्य के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले से ऐसी ही एक दुखद खबर सामने आ रही है जहां सिरौली गांव में आदमखोर तेंदुए ने जंगल में लकड़ियां लेने गई एक महिला पर हमला (Leopard attack) कर उसे अपना निवाला बना लिया। काफी खोजबीन करने पर ग्रामीणों को महिला का क्षत-विक्षत शव उसके घर से डेढ़ किमी दूर जंगल में पड़ा मिला। घटना से जहां मृतका के परिजनों में कोहराम मचा हुआ है वहीं पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल है। घटना से डरे-सहमे ग्रामीणों ने वध विभाग से आदमखोर तेंदुए को मारने तथा क्षेत्र में पिंजरे लगाने की मांग की है।
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मृतका के बेटे राजेंद्र पर एक बार फिर टूटा दुखों का पहाड़:-

प्राप्त जानकारी के अनुसार मूल रूप से राज्य के पिथौरागढ़ जिले के कनालीछीना विकासखंड के सिरोली गांव निवासी तुलसी देवी पत्नी स्व. चंद्र सिंह बीते रविवार शाम को रोज की तरह जंगल में लकड़ियां लेने गई हुई थी। बताया गया है कि करीब ढाई घंटे बाद भी जब वह घर वापस नहीं लौटी तो परिजनों को उसकी चिंता हुई। जिसके बाद तुलसी के बेटे राजेंद्र सिंह ने अन्य ग्रामीणों के साथ मिलकर तुलसी की खोजबीन शुरू की। काफी खोजबीन करने पर रात करीब साढ़े दस बजे ग्रामीणों को तुलसी का क्षत-विक्षत शव घर से डेढ़ किलोमीटर दूर जंगल में पड़ा मिला। ग्रामीणों ने तुरंत इसकी सूचना वन विभाग को दी, जिसके बाद रात को ही मृतका का शव पोस्टमार्टम के लिए पिथौरागढ़ भेजा गया। वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक महिला को तेंदुए ने अपना निवाला बनाया है। घटना से तुलसी के छोटे बेटे राजेंद्र पर एक बार फिर दुखों का पहाड़ टूट गया है। बता दें कि दस वर्ष पहले मृतका तुलसी के बड़े बेटे तनुज सिंह, बहू और पोते की अंगीठी की गैस लगने से मौत हो गई थी। इतना ही नहीं इस हादसे के दो वर्ष बाद मृतका के पति चंद्र सिंह का भी देहांत हो गया। इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी राजेंद्र जैसे तैसे अपने परिवार को संभाल रहा था परंतु अब बूढ़ी मां की आकस्मिक मौत से वह एक बार फिर टूट गया।

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Sunil

सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।

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