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उत्तराखण्ड का बेटा उत्कर्ष बना साइंटिस्ट, परिचालक पिता ओम प्रकाश की रही मुख्य भूमिका

uttarakhand: उत्कर्ष के वैज्ञानिक बनने से परिवार में हर्षोल्लास का माहौल , पिता की आंखों से छलक आए खुशी के आंसू..alt="uttarakhand utkarsha become scientist"

इसमें कोई शक नहीं कि एक पिता हमेशा खुद को अपने बेटे से हारते हुए देखना चाहता है। वैसे भी कहा जाता है कि माता-पिता और गुरुजनों को सबसे अधिक खुशी उस दिन मिलती है जिस दिन उनका बेटा/शिष्य उनसे कहीं अधिक आगे निकल जाए और इसी खुशी को पाने के लिए वह दिन-रात मेहनत करते रहते हैं। उस दिन भले ही बेटे को लगता हो कि उसने माता-पिता को हरा दिया है परन्तु सच तो यह है कि यही वह दिन जब उसके माता-पिता सही मायने में पहली बार विजयी हुए हैं। ऐसी ही कुछ कहानी है उत्तराखंड परिवहन निगम (uttarakhand transport corporation) के हल्द्वानी डिपो में तैनात परिचालक ओमप्रकाश की। जी हां.. ओमप्रकाश ने वर्षों से अपने बेटे को काबिल बनाने का जो सपना देखा था आज वह पूरा हो गया, उनके बेटे उत्कर्ष ने भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर में साइंटिस्ट बनकर पिता के सपने को हकीकत में बदल दिया। आज ओमप्रकाश बहुत खुश हैं और हो भी क्यों ना न सिर्फ उनके बेटे उत्कर्ष ने साइंटिस्ट बनकर पिता को न‌ई पहचान दिलाई अपितु उनकी दोनों बेटियां ने भी मल्टीनेशनल कंपनी में अपनी पहचान बनाकर पिता को ढलती उम्र में सुकून के साथ जिंदगी बिताने का आमंत्रण दिया।


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बेटे-बेटियों को शिखर तक पहुंचाने में ओमप्रकाश ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका, टिकट काट-काटकर संवार दी अपने लाडलो की जिंदगी:- प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य(uttarakhand) के नैनीताल जिले के हल्द्वानी निवासी ओमप्रकाश का बेटा उत्कर्ष भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिक बन गया है। बता दें कि ओमप्रकाश रोडवेज के हल्द्वानी डिपो में एक परिचालक है। हर पिता की तरह रोडवेज के परिचालक ओमप्रकाश ने भी अपने लाडलो की काबिल बनाने का सपना देखा था। दिन-रात बसों के टिकट काट-काटकर उन्होंने अपनी जिंदगी तो गुजार दी परन्तु अपने जिगर की टुकड़ों की पढ़ाई में बिल्कुल भी रूकावट नहीं आने दी। जी तोड मेहनत कर उन्हें पढ़ाया-लिखाया और जिगर के टुकड़े ने भी पिता की मेहनत का ऐसा ईनाम दिया ओमप्रकाश की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए। बता दें कि किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले ओमप्रकाश के सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया था। हालात से लड़ते हुए उन्होंने खुद की पहचान बनाई और रोडवेज की हल्द्वानी डिपो में परिचालक की नौकरी पाकर अपने पैरों पर खड़े हुए। बेटे उत्कर्ष सहित दोनों बेटियों को बेहतरीन स्कूलों में शिक्षा मुहैया कराई। उन्होंने बेटे उत्कर्ष का दाखिला हल्द्वानी के बाल विद्या निकेतन प्राथमिक विद्यालय में कराया। उसके बाद उत्कर्ष की छठीं से आठवीं तक की शिक्षा नैनीताल रोड स्थित श्री केदार हाईस्कूल से पूर्ण कराकर इंटर तक की पढ़ाई नैनीताल रोड स्थित बीरशिबा से पूर्ण कराई। देहरादून से बीटेक और मुम्बई से एमटेक कराकर उसे इस काबिल बनाया कि उसने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में वैज्ञानिक बनकर पिता के सपनों को हकीकत दिखा दी।


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