Connect with us
Uttarakhand Government Happy Independence Day
Uttarakhand Marriage Culture Tradition

उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

संपादकीय

अमीरों की शादी की रस्में बनी गरीबों के जी का जंजाल, दिखावे के चक्कर में क‌ई गुना बढ़ गया शादी का खर्च….

Uttarakhand Marriage Culture Tradition: पहाड़ों में भी दिखने लगा असर, मेहंदी, प्री वेडिंग, हल्दी जैसी न‌ई न‌ई दिखावटी रस्मों से क‌ई गुना बढ़ गया शादी का खर्च…

इन दिनों शादी का सीजन चल रहा है। बैंड बाजे के साथ ही डीजे की धूम मची हुई है। आज की शादी हमारे बचपन के दिनों में होने वाली शादी से बिल्कुल ही अलग है। बड़े बुजुर्गो के समय में 80 या 90 के दशक और उससे पहले जहां टू डे शादी पहाड़ की विषम परिस्थितियों के कारण ग्रामीणों की मजबूरी थी वहीं आजकल रात की शादी फैशन बन गया है। चलो इसे भी छोड़ दिया जाए तो मेहंदी, प्री वेडिंग, हल्दी जैसी न‌ई न‌ई दिखावटी रस्में जहां अमीरों परिवारों की शादी की यादों को सहेजने का काम कर रही है वहीं यही न‌ई रस्में गरीब एवं मध्यमवर्गीय परिवारों पर बेवजह का आर्थिक बोझ भी बढ़ा रहे हैं। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ वर्षों पहले तक होने वाली शादी को याद करते हैं तो उस दौर में जहां प्री-वेडिंग का नामोनिशान नहीं था वहीं हल्दी और मेहंदी जैसी रस्में केवल शगुन के तौर पर निभाई जाती थी, जो महज चंद समय के लिए ही सीमित होती थी। उस दौरान इन रस्मों में कहीं से भी दिखावा प्रदर्शित नहीं होता था जबकि आज पहले जहां यह हल्दी, मेहंदी एवं प्री वेडिंग रस्मों के दौरान हजारों रूपये खर्च कर के विशेष डेकोरेशन किया जाता है, उस दिन न केवल दूल्हा या दुल्हन बल्कि घर आए मेहमान भी अलग-अलग जोड़ी परिधान धारण करते हैं। जैसे हल्दी रस्म में विशेष पीत (पीले) वस्त्र धारण किए जाते हैं। कुछ वर्षों पूर्व इन रस्मों का प्रचलन ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता था, लेकिन कोरोना के बाद पिछले साल दो-तीन साल से इसका प्रचलन शहरों के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में भी तेजी बढ़ रहा है।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड की लड़कियां कर रही अब फौजियों को शादी के लिए रिजेक्ट, क्या होगा अग्निवीरो का..

बात हल्दी रस्म की ही करें तो शादी से ठीक पहले निभाई जाने वाली इस रस्म के दौरान पहाड़ों में कोई दिखावा नहीं होता था, उस दौरान यह न केवल हमारी सभ्यता संस्कृति और रीती रिवाजों का हिस्सा था बल्कि इसके पीछे तार्किकता भी होती थी। बात 80 या 90 के दशक से पहले की करें तो उस दौरान जहां पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का अभाव था वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आज की तरह न तो जगह जगह दुकानें मौजूद थी और ना ही आज की तरह साबुन व शैम्पू थे और ना ही ब्यूटी पार्लर। इसलिए उस दौरान हल्दी के उबटन से घिसघिस कर दूल्हे-दुल्हन के चेहरे व शरीर से मृत चमड़ी और मेल को हटाने, चेहरे को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, चंदन, आटा, दूध से तैयार उबटन का प्रयोग करते थे। ताकि दूल्हा-दुल्हन सुंदर लग सके। जिसकी सारी जिम्मेदारी घर-परिवार की महिलाओं की थी। उस दौरान कुछ महिलाएं शगुन आखर (फाग गीत) गाकर इस शुभ बेला पर देवी देवताओं का आह्वान करते हुए दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद देती थी। लेकिन आजकल की हल्दी रस्म मोडिफाइड, दिखावटी और मंहगी हो गई है। पहले होने वाली हल्दी की रस्म जहां शादी के कुछ घंटों पहले होती थी वहीं आज इसके लिए न केवल अलग दिन निर्धारित किया जा रहा है बल्कि अब तो दूल्हा, दुल्हन के घर जाकर पूरे कार्यक्रम को शादी से भी अहम बनाने का भरसक प्रयास कर रहा है। जिसमें हजारों रूपये महज डेकोरेशन पर ही खर्च किए जा रहे है। आज दुल्हा दुल्हन और उनके सगे संबंधियों द्वारा इस अवसर के लिए ही महंगे पीले परिधान खरीदें जा रहे हैं।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड: इस जिले के लड़कों को नहीं मिल रही है शादी के लिए लड़कियां जा रहे हैं नेपाल

इसी तरह मेहंदी रस्म में भी अब दिखावें से अधिक नहीं रह गई है। यहां यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि प्री वेडिंग, मेहंदी और हल्दी जैसी यह आज की दिखावटी रस्में न केवल गरीब परिवारों पर फालतू का आर्थिक बोझ डालने का काम कर रही है बल्कि यह घर के मुखिया के माथे पर तनाव की लकीरें खींचने के साथ ही उसे कर्ज में डुबाने का काम भी कर रही है जिससे चिंतामय पसीना टपकता रहता है। घर के मुखिया के चेहरे की इस शिकन को आसानी से महसूस किया जा सकता है। पुराने समय में घर भले ही कच्चे थे परन्तु ग्रामीणों के इरादे मजबूत थे। इन्हीं कच्ची छतों के नीचे पक्के इरादों के साथ दूल्हा-दुल्हन बिना किसी दिखावे के फेरे लेकर अपना जीवन आनंद के साथ शुरू करते थे, लेकिन आज पक्के इरादे कम और दिखावा और बनावटीपन ज्यादा होने लगा है। वैसे हम इन रस्मों के खिलाफ नहीं है, जो परिवार सक्षम है वो चाहे इन रस्मों पर लाखों रूपए भी खर्च कर दें इससे हमें कोई सरोकार नहीं है परन्तु आजकल तो यह देखने में आ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक रूप से असक्षम परिवार के लड़के भी इस शहरी बनावटीपन में शामिल होकर परिवार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा रहे है। क्योंकि उन्हें इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि के लिए रील बनानी, अपने दोस्तों के बीच अपनी शानौ शौकत बढ़ानी है। लेकिन बेटे के इस रील बनाने और शानौ शौकत दिखाने के चक्कर में बाप की कर्ज़ उतरने में ही रेल बन जाती है।
यह भी पढ़ें- उत्तराखंड सांस्कृतिक समाज की रामलीला: बेटी बनी राम तो पिता ने निभाया रावण का किरदार…

हैरानी तो तब होती है जब मेहनत मजदूरी कर, पाई पाई जोड़कर, अपने बच्चों को शिक्षित कराने वाले मां बाप, हैसियत ना होते हुए भी बच्चों की जिद के आगे घुटने टेकने को मजबूर हो जाते हैं। मजबूर हो भी कैसे ना घर के पढ़े लिखे युवाओं द्वारा उन्हें अपशब्दों से नवाजा जाता है। सम्मान और इज्ज़त की जगह आप कुछ नहीं जानते, आपको समझ नहीं है, आपकी सोच वही पुरानी अनपढ़ों वाली रहेगी, यह कहते हुए अपने माता-पिता को गंवार, पिछड़ा, आदि शब्दों के साथ ही गालियों से संबोधित किया जाता है। कुल मिलाकर अब ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे घरों में भी इन रस्मों की अदायगी के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जिनके मां-बाप ने हाड़-तोड़ मेहनत और पसीने की कमाई से पाई-पाई जोड़ कर मकान का ढांचा खड़ा किया, परिवार की गुजर बसर की, बच्चों को पढ़ाया लिखाया लेकिन आजकल के ये नवयौवन लड़के-लड़कियां दिखावे के लिए बिना कुछ सोचे समझे अपने मां-बाप की हैसियत से विपरीत जाकर अनावश्यक खर्चा करते हैं। यहां कहना ग़लत नहीं होगा कि आज दिखावा हम पर हावी हो गया है, सोशल मीडिया पर खुद को बढ़ा चढ़ाकर परोसा जा रहा है। यह सोशल मीडिया ही हैं जिसके कारण आज यह फिजूलखर्ची रस्में पहाड़ तक अपनी जड़ें फैलाने में कामयाब हुई है। यह पूरी तरह बाजारवाद की जीत है, जिसकी गिरफ्त से आज बच पाना असम्भव सा नजर आने लगा है। इसका परिणाम यह भी हो रहा है कि अपने परिवार की परिस्थितियों को अच्छी तरह समझने वाले युवाओं के मुंह से मंदिर में जाकर विवाह करने की बातें भी सुनने को मिलने लगी है।

यह भी पढ़ें- उत्तराखंड: इस कपल ने छोड़ दिया दिल्ली पहाड़ में बनाया खूबसूरत घर कर रहे खेती-बाड़ी देखें तस्वीरें

उत्तराखंड की सभी ताजा खबरों के लिए देवभूमि दर्शन के WHATSAPP GROUP से जुडिए।

👉👉TWITTER पर जुडिए।

लेख शेयर करे

More in उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

Advertisement

UTTARAKHAND CINEMA

Advertisement Enter ad code here

PAHADI FOOD COLUMN

UTTARAKHAND GOVT JOBS

Advertisement Enter ad code here

UTTARAKHAND MUSIC INDUSTRY

Advertisement Enter ad code here

Lates News

To Top