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Why is Uttarakhand called Devbhoomi, know some special facts. why uttarakhand called devbhoomi

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उत्तराखण्ड विशेष तथ्य

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why uttarakhand called devbhoomi: क्यों कहा जाता है उत्तराखंड को देवभूमि जानिए कुछ विशेष तथ्य

why uttarakhand called devbhoomi: विश्व भर में देवभूमि के नाम से पहचानी जाती है उत्तराखंड की पावन धरा, जाने इससे जुड़े कुछ विशेष तथ्य….

तमाम रहस्यों से भरा उत्तराखंड अपने शांत और खुशनुमा वातावरण के साथ–साथ घने वादियों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। तपोभूमि, दिव्य भूमि इत्यादि नाम से विख्यात उत्तराखंड देवभूमि नाम के लिए भी विश्वविख्यात है। जब भी उत्तराखंड का जिक्र किया जाता है तो उसके आगे देवभूमि जरूर लगाया जाता है पर क्या आपने कभी सोचा है कि उत्तराखंड के आगे देवभूमि लगाने के पीछे के कारण क्या है जब भी उत्तराखंड का जिक्र आता है तो देवभूमि क्यों लगाया जाता है ? क्यों पुराणों में और लोगों के द्वारा उत्तराखंड को देव भूमि कहा जाता है। तो चलिए आज हम आपको बताएंगे क्यों कहा जाता है उत्तराखंड को देवभूमि! आखिर क्या है उत्तराखंड के नाम के साथ देवभूमि के जिक्र का राज।
(why uttarakhand called devbhoomi)
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(1)उत्तर में हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों एवं शांत वादियों के बीच बसा उत्तराखंड हमेशा से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रही है। यहां की शांत वातावरण में सदियों से ऋषि मुनियों ने कठिन तपस्या की। उन्होंने अपने कठिन तप और योग से भगवान को प्रसन्न किया जिसके बाद इस भूमि में प्रकट होकर भगवान ने उन्हें दर्शन भी दिए हैं। सभी ऋषि मुनि यह भी मानते हैं कि उत्तराखंड ही वह भूमि है जिसमें तप करने से ईश्वर की प्राप्ति जल्द होती है। सदियों से तपस्या में लीन रहने वाले ऋषियों मुनियों के कारण यह तपोभूमि और देवभूमि भी कहलाती है।
(2)मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड में 33 कोटि देवी देवता निवास करते हैं और उत्तराखंड भूमि ही उनकी निवास स्थल है।
(3)विश्व विख्यात छोटा चार धाम – केदारनाथ (भगवान भोलेनाथ), बद्रीनाथ (भगवान विष्णु), गंगोत्री ( मां गंगा का उद्गम स्थल) और यमुनोत्री (मां यमुना का उद्गम स्थल) उत्तराखंड के उत्तर में स्थित है।
(4)देश और दुनिया में प्रसिद्ध प्रमुख पवित्र नदियां जैसे गंगा, यमुना, सरस्वती, भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी आदि नदियों का उद्गम स्थल उत्तराखंड ही है।
(5)सदियों से कई रहस्य से घिरा हुआ देवभूमि उत्तराखंड खुद देवी-देवताओं के लिए एक पवित्र जगह रहा है जिसका प्रमाण हमें पुराणों में मिलता है। पुराणों के अनुसार वर्तमान हरिद्वार पुराणों में कनखल के साथ–साथ हरी का द्वार नाम से भी जाना जाता रहा है। इस जगह पर भगवती दुर्गा के अवतार और भोलेनाथ की अर्धागिनी सती के पिता दक्ष ने यज्ञ किया था इसी जगह पर माता सती ने अपने हवन में कूदकर अपने प्राणों कि आहुति दी थी।
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(6)उत्तराखंड के हरिद्वार कनखल में स्थित दक्ष प्रजापति नगर भगवान शिव का ससुराल कहलाता है जहां आज भी कई महात्मा और साधु ध्यान लगाने आते हैं।
(7)शेरोवाली, पहाड़ों वाली, उमा और गौरी इत्यादि कई नाम से जाने जाने वाली भगवान भोलेनाथ की अर्धांगिनी और हिमालय की पुत्री देवी पार्वती और मां नंदा की जन्मभूमि उत्तराखंड कहलाती है।
(8)मां पार्वती जो कि उत्तराखंड में मां नंदा के नाम से विख्यात है कि राज जात कैलाश यात्रा पूरे देश में सिर्फ उत्तराखंड में ही निकलती है और कहा जाता है कि माता पार्वती का निवास स्थान उत्तराखंड के चमोली में स्थित है।
(9)विश्व के प्रसिद्ध योग स्थलों में से कई योग स्थल जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार आदि उत्तराखंड में स्थित है।
(10)महर्षि व्यास द्वारा रचित प्रमुख धार्मिक पुस्तक महाभारत को उत्तराखंड में ही लिखा गया था। इसको लिखने के लिए महर्षि व्यास ने उत्तराखंड की भूमि को ही चुना था।
(11)देश दुनिया में विख्यात सिक्खों का पवित्र गुरुद्वारा जिसे हम पांचवा धाम भी कहते हैं, हेमकुंड साहिब उत्तराखंड में ही स्थित है।
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(12) पांच प्रयागों का संगम विष्णुप्रयाग, सोनप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग उत्तराखंड में ही है। जिनमे स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
(13)भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंग में से प्रसिद्ध पांचवा केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड राज्य में स्थित है।
(14)महाभारत के युद्ध के पश्चात स्वर्ग की यात्रा करने के लिए पांडवों ने उत्तराखंड को ही चुना और उत्तराखंड के माणा गांव से पांडवों ने स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी। यही नहीं भगवान भोलेनाथ की कृपा और अपने द्वारा महाभारत युद्ध में किए गए पाप से मुक्ति के लिए पांडव भगवान भोलेनाथ को ढूंढने के लिए उत्तराखंड ही आए थे।
(15)उत्तराखंड में भगवती दुर्गा के कई शक्तिपीठ जैसे मां सुरकंडा देवी, मां कुंजापुरी देवी, मां पूर्णागिरि, मां बिंदेश्वरी, धारी देवी शक्तिपीठ, नैना देवी, गिरिजा देवी एवं प्रसिद्ध राजजात यात्रा से विख्यात मां नंदा देवी आदि के प्रसिद्ध शक्तिपीठ उत्तराखंड में स्थित है।
(16)मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार उत्तराखंड में तप करने से भगवान की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।
(17)सदियों से ही सभी देवी–देवताओं और ऋषि मुनियों ने तप के लिए उत्तराखंड भूमि को चुना और उनके कठिन तप से ही यह भूमि देवभूमि कहलाई।
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(18)वैसे तो सभी राज्यों में देवी–देवताओं और मंदिरों को पूजा एवं माना जाता है। लेकिन देवभूमि की पवित्र नगरी में देवी–देवताओं से जुड़े कुछ अलग ही प्रमाण मिलते हैं। जहां हर घरों में आपको भगवान भैरवनाथ, नरसिंह देवता, काली माता इत्यादि के छोटे-छोटे मंदिर जो कि हमारे इष्ट देवता भी कहलाते हैं उनके थान आपको प्रत्येक घरों में मिल जाएंगे। यहां देवी–देवताओं को बुलाने का भी प्रमाण आपको थोड़ा दूसरे राज्यों से हटकर मिलता है। यहां पर जागर लगाकर देवताओं को बुलाया जाता है और देवी–देवता व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।
(19)उत्तराखंड के उत्तर में हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां स्थित हैं। कहते हैं कि इन चोटियों पर भगवान भोलेनाथ निवास करते हैं जिस कारण यह शिव का निवास स्थान एवं जन्मभूमि भी कहलाती है।
देवभूमि नाम से विख्यात उत्तराखंड की भूमि हमेशा से ऋषि-मुनियों के लिए दिव्य भूमि रही है। ऋषि-मुनियों ने यह बात मानी कि अगर भगवान के दर्शन करने हैं या भगवान को पाना है तो इसके लिए देवभूमि यानी कि उत्तराखंड में तप करने से ही भगवान के दर्शन व्यक्ति को आसानी से हो जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन होते हैं। वैसे पूरे भारत में ही हर जगह पर मंदिर एवं ऋषि-मुनियों निवास करते हैं मगर उत्तराखंड में निवास करने वाले ऋषि मुनि और यहां के स्थानीय निवासियों के देवी-देवताओं में साक्षात भगवान के दिव्य दर्शन वाली बात होती है। हजारों और सैकड़ों ऋषि-मुनियों ने माना कि उत्तराखंड देव भूमि है जिसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
तो यह थे उत्तराखंड को देव भूमि का दर्जा दिलाने वाले कुछ विशेष तथ्य।
(why uttarakhand called devbhoomi)

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