त्रियुगीनारायण मंदिर में क्या है ऐसा विशेष की मुकेश अंबानी ने यहाँ अपने बेटे की विवाह करने की इच्छा जताई
त्रियुगीनारायण मंदिर में कुछ दिन पहले रिलायंस ग्रुप की चार-सदस्यीय टीम पहुंची थी। जिन्होंने मंदिर की लोकेशन और गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) के बंगले का निरीक्षण कर आवश्यक जानकारियां लीं। इसके बाद से ऐसी उम्मीदे लगाई जा रही है ,कि मुकेश अंबानी अपने बेटे आकाश के विवाह के लिए यहां पहुंच सकते हैं। बताया जा रहा है कि त्रियुगीनारायण के महत्व को देखते हुए श्लोका ने यहां विवाह करने की इच्छा जताई है। श्लोका के पिता उद्योगपति रसेल मेहता के पार्टनर अनिरुद्ध देशपांडे ने भी उन्हें त्रियुगी नारायण में विवाह करने का सुझाव दिया था।
बता दें कि इस मंदिर में केवल जयमाला की रस्में और सार्वजनिक भोज का आयोजन किया जाता है।उत्तराखण्ड जिसे देवभूमि भी कहते है अपने पवित्र तीर्थ स्थलों व कई धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। इसलिए उत्तराखण्ड एक बेहद सुन्दर पर्यटन स्थल होने के साथ साथ एक पवित्र तीर्थस्थलों का समूह भी है। ऐसा ही एक स्थल रुद्रप्रयाग में स्थित है जिसे “त्रियुगीनारायण मंदिर” से नाम से जाना जाता है। यह मंदिर पौराणिक कथाओ की वजह से काफी प्रसिद्ध एवम् लोकप्रिय माना जाता है। यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक ही एक भाग है। वेदों में ऐसा उल्लेख है कि यह त्रियोगिनारायण मंदिर त्रेता युग में स्थापित किया गया था , जबकि केदारनाथ और बद्रीनाथ द्वापर युग में स्थापित हुए थे।
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त्रियुगीनारायण मंदिर में ही हुआ था शिव-पार्वती का शुभ विवाह- त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ऐसी कथाये प्रचलित है की यह भगवान शिव जी और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल है। त्रियुगीनारायण मंदिर के अन्दर सदियों से अग्नि जल रही है। मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया अर्थात अग्नि जो तीन युगों से जल रही है। इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव और देवी पार्वती ने विवाह किया था। यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु भगवान् ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा जी इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है।
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पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख – त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पर्वतराज हिमावत या हिमावन की पुत्री थी। पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ था। माता पार्वती ने अपने कठिन ध्यान और साधना से भगवान शिव का वरण किया था। जिस स्थान पर मां पार्वती ने साधना की उस स्थान को गौरी कुंड कहा जाता है। ऐसी मान्यता प्रचलन में है की जो श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं वे गौरीकुंड के दर्शन भी करते हैं।
पौराणिक ग्रंथ बताते हैं कि शिव जी ने गुप्त काशी में माता पार्वती के सामने विवाह प्रस्ताव रखा था। इसके बाद उन दोनों का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी सोन आैर गंगा के मिलन स्थल पर संपन्न हुआ। विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।
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