सलाम -माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाली उत्तराखण्ड की पूनम राणा है सबके लिए मिशाल
उत्तराखण्ड की वो बेटी जिसने अपने परिवार में माता -पिता खोये अपने दो भाईओ को खो दिया लेकिन अपने संघर्ष की इस जद्दोजहद में कभी अपना हौसला नहीं खोया। उत्तरकाशी के नाल्ड गांव की बहादुर बेटी पूनम राणा है जिन्होंने मई 2018 को दुनिया के सबसे ऊचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट पर फतह कर तिरंगा लहराया। उनकी जिंदगी में बचपन से ही मुसीबतो का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन उनके हिम्मत की दाद देनी होगी जो इन मुसीबतो से उभरकर भी एक पर्वतारोही बनकर एवरेस्ट फतह करने का सपना रखा।
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पूनम राणा की जिंदगी का संघर्ष – जब पूनम मात्र 6 महीने की थी तब उनके सर से माँ का आँचल उठ गया और जब ये बेटी 5 वर्ष की हुई तो सर से पिता का साया भी उठ गया। किसी भी बच्चे के लिए माता पिता का साया सर से उठना कितने दुखो का पहाड़ टूटना होता है ये तो पूनम राणा ही समझ सकती थी। अब एक भरोसा था तो वो थे दो भाई ,लेकिन किस्मत ने वो भी छीन लिए। जब पूनम 17 साल की हुईं, तो बड़े भाई कमलेश की मौत हो गई बड़े भाई के दुखो से उभरी नहीं थी की 2016 में एक रोड एक्सीडेंट में उनके छोटे भाई की भी मौत हो गई। भाई की मृत्यु पर दुख जताने आए ट्रेकिंग कैंप में पर्यटन व्यवसायी दिपेंद्र पंवार ने पूनम को एवरेस्ट विजेता और टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की निदेशक बछेंद्री पाल के बारे में बताया।
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वर्ष 2016 में बछेंद्री ने पूनम को नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से प्रशिक्षण दिलाया और उत्तरकाशी स्थित बेस कैंप में इंस्ट्रक्टर पद पर रख दिया। इसके बाद बछेंद्री ने उन्हें अपने एवरेस्ट अभियान में शामिल कर लिया।अब पूनम को एक हौसला मिला और साथ ही एक नयी जिंदगी की शुरुआत करने का मौका भी। पूनम ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मॉउंटेनरिन्ग से पर्वतारोहण का बेसिक और एडवांस कोर्स किया। इसके बाद उन्होंने एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रैकिंग की थी। इसके साथ ही स्पीती, रुद्रगैरा, कनामो ,ग्योखोरी, काला पत्थर,जैसे शिखरों पर पूनम ने सफल आरोहण किया। अपने बुलंद हौसलो से पहाड़ की इस बेटी ने दुनिया के पर्वतारोहियों में अपना भी नाम दर्ज कर उत्तराखण्ड को गौरवान्वित किया।
