जोशीमठ: मार्च में होनी है बेटी की शादी, मां बोली अब कैसे उठेगी पैतृक घर से बेटी की डोली
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आपदा की जद से गुजर रहे जोशीमठ के वाशिंदों के दर्द का हम केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं। इस समय जोशीमठ के वाशिंदे जिस पीड़ा से गुजर रहे हैं उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। घरों में दरार पड़ने से जहां लोगों के बच्चों का भविष्य ओझल होने लगा है और परिवार की आजीविका पर भी संकट आन खड़ा हुआ है वहीं बच्चों की शादियां भी टूटने की कगार पर पहुंच गई है। जिन घरों में बच्चों की शादी की तैयारियां बड़े जोरों शोरों से चल रही थी वहां अब शादी कैसे हों इस बात की चिंताएं हो रही है। जिन लोगों की शादी की खुशियों पर ग्रहण लगा है उनमें ज्योति भी शामिल हैं। घरों के बाहर शासन प्रशासन द्वारा लगाए गए लाल निशान को देखकर जहां ज्योति के परिजनों का बेटी की शादी को लेकर चिंतित होना लाजिमी है वहीं इससे ज्योति के दुल्हन बनने के अरमानों का भी दम घुट रहा है। रूंधे हुए गले से वह बस इतना ही कह पा रही है कि अब शायद ही इस पैतृक घर से उसकी डोली उठ पाएगी।
(Joshimath Landslide sinking news)
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बता दें कि ज्योति की शादी मार्च माह में तय हुई है। जिसके लिए परिजन काफी समय से शादी की तैयारियों में जुटे हुए थे। परिजनों के मुताबिक शादी के लिए जरूरी सामान की खरीदारी चल रही थी। देहरादून से ढेर सारा सामान खरीदकर उन्होंने घर में भी रख दिया गया था। लेकिन अब उन्हें नहीं लगता है कि उनकी बेटी की डोली उनके पैतृक घर जोशीमठ से उठ पाएगी। शासन प्रशासन से नाराज़ ज्योति की मां का तो यह भी कहना है कि अब उन्हें यह भी समझ नहीं आ रहा है कि ऐसी परिस्थिति में क्या करें और कहां जाएं। शादी के लिए खरीदा जरूरी सामान कहां रखा जाएगा? यह भी समझ नहीं आ रहा है। वह आगे कहती हैं कि बेटी ज्योति की शादी जोशीमठ के इसी पैतृक घर से करना चाहती थी। पर अब भगवान ही जाने आगे क्या होगा? उधर दूसरी ओर बाबुल के घर से विदा होकर डोली में बैठने का अरमान देख रही ज्योति को तो जैसे संकट की इस घड़ी में कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। वह रूंधे हुए गले से सिर्फ यही कह पा रही है कि ‘मायके से विदाई हर किसी लड़की का सपना होता है परन्तु अब मुझे नहीं लगता कि मेरी डोली मेरे ही घर से जाएगी।’
(Joshimath Landslide sinking news)
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सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।
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