जोशीमठ: बड़ी कश्मकश में यह परिवार, घर हुआ तबाह, पर कुल देवी नहीं है शिफ्ट होने को तैयार
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आदि गुरु शंकराचार्य की तपस्थली , नरसिंह देवता की पूज्यस्थली के साथ ही हिमालय और भगवान बद्री विशाल का प्रवेश द्वार सहित कई ऐतिहासिक पौराणिक एवं आध्यात्मिक घटनाओं का गवाह बना जोशीमठ शहर आज तबाही की कगार पर खड़ा है। कभी भी भू समाधि लेने को तत्पर इस शहर से स्थानीय वाशिंदों को विस्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यह सर्वविदित है कि देवभूमि कहे जाने वाले इस उत्तराखण्ड की पवित्र धरती पर मानवों के साथ ही देवी देवता भी निवास करते हैं। ऐसे में यह संकट न केवल स्थानीय लोगों पर आया है बल्कि देवी देवताओं पर भी आ खड़ा हुआ है। सरकार स्थानीय लोगों को तो विस्थापित कर रही है परन्तु देवी देवताओं को कैसे विस्थापित किया जाता है। वैसे भी इनका विस्थापन हमारे हाथ में नहीं है। जोशीमठ से आ रही ऐसी ही एक खबर इस बात को पूरी तरह चरितार्थ कर रही है। जी हां.. बात जोशीमठ के सर्वाधिक असुरक्षित घरों में शामिल चंद्र बल्लभ पांडे के घर की हो रही है जहां घर के साथ ही कुल देवी के मंदिर में भी भारी दरारें पड़ी हुई है परन्तु कुल देवी अपने मूल स्थान से शिफ्ट होने को तैयार नहीं हैं।
(Joshimath Landslide temple Mandir)
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इस संबंध में घर के मुखिया चंद्र बल्लभ पांडे की मानें तो उन्होंने मंदिर को शिफ्ट करने की पुरजोर कोशिश कर ली है परन्तु जैसे ही वह देवी की प्रतिमा को उठाने जाते हैं तो देवी उन्हें धक्का दे देती हैं। वह कई बार धक्का खाकर गिर चुके हैं। ऐसे में भले ही चन्द्र बल्लभ पांडे ने सुरक्षित स्थान पर शरण ले ली हों परंतु वह हर रोज देवी की पूजा करने अपने घर आते हैं। इस संबंध में उनका यह भी कहना है कि यहां देवी में बड़ी शक्ति है। लोग दूर दराज से यहां पूजा करने के लिए आते हैं। ऐसे में वह बिना देवी को लिए जोशीमठ से जाने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है। महज इस एक घटना से जोशीमठ के ताजा हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थानीय वाशिंदों पर किस कदर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। फिलहाल चंद्र बल्लभ पांडे की इस समस्या का हल न तो स्वयं उनके पास है न ही प्रशासनों को कुछ सूझ रहा है। अब तो बस चंद्र बल्लभ पांडे को किसी चमत्कार पर ही भरोसा है। उनका कहना है कि देवी मां ही अब इस समस्या का कोई हल निकालेंगी।
(Joshimath Landslide temple Mandir)
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सुनील चंद्र खर्कवाल पिछले 8 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे राजनीति और खेल जगत से जुड़ी रिपोर्टिंग के साथ-साथ उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपराओं पर लेखन करते हैं। उनकी लेखनी में क्षेत्रीय सरोकारों की गूंज और समसामयिक मुद्दों की गहराई देखने को मिलती है, जो पाठकों को विषय से जोड़ती है।
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