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HARELA

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हरियाली और ऋतु परिवर्तन का प्रतीक….”उत्तराखण्ड के लोक पर्व हरेला का महत्व”

उत्तराखंड में आज मनाया जाएगा लोकपर्व हरेला (Harela), हरियाली का है प्रतीक, कुमाऊं में हर्षोल्लास का माहौल..

जी रया ,जागि रया ,
यो दिन बार, भेटने रया,
दुबक जस जड़ हैजो,
पात जस पौल हैजो,
सियक जस त्राण हैजो,
स्यालक जस बुद्धि हैजो
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
हरेला त्यार मनाते रया,
जी रया जागी रया.
ये ही वो शब्द है जो पहाड़ में हमारे बुजुर्गों द्वारा आशीष के तौर पर दिए जाते हैं। ये शब्द उस खास त्यौहार की भी याद दिलाते हैं जो हरियाली का प्रतीक है। सावन के मौसम में जब चारों तरफ हरियाली छाई होती है, इसी हरियाली के साथ एक नए ऋतु परिवर्तन का आगाज भी होता है। इसी सावन के पहले दिन यानी कर्क संक्रान्ति को मनाया जाता है कुमाऊं का लोकप्रिय त्योहार हरेला (Harela)। वैसे तो हरेला घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है। परंतु यह त्योहार हमें यह सीख भी देता है कि बरसात के इन दिनों में अगर कुछ भी बोया जाए, कोई नया पौधा लगाया जाए तो उसकी जड़ें जल्दी ही जमीन पकड़ लेती है। इस मौसम में हमें न तो पालें आदि से नवीन पौधे को बचाना होता है और ना ही उसके लिए पानी आदि की व्यवस्था करनी होती है। सच कहें तो यही वो दिन है जब हम प्रकृति के सबसे करीब होते हैं। पूरे भारतवर्ष में जहां सावन का महीना क‌ई सप्ताह पहले श्रावण कृष्ण प्रतिपदा से शुरू हो जाता है वहीं कुमाऊं अंचल में इसी दिन से पवित्र श्रावन मास की शुरुआत भी मानी जाती है। इस बार हरेला शुक्रवार 16 जुलाई को मनाया जाएगा।
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पहाड़ में श्रावण लगने से नौ दिन पहले बोया जाता है हरेला, क‌ई अनाजों का होता है मिश्रण:- वैसे तो पूरे वर्ष में हरेला तीन बार मनाया जाता है परन्तु श्रावण मास में मनाए जाने वाले हरेले का त्योहार अपने आप में विशेष महत्व रखता है। यही पहाड़ में सर्वाधिक लोकप्रिय भी है। इसका एक कारण तो यह है कि पवित्र श्रावण मास को भोलेनाथ का महीना माना जाता है। इसी माह में भगवान शिव के क‌ई अनुष्ठान सम्पन्न होते हैं। वैसे भी कुमाऊं में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विद्यमान है, पहाड़ में क‌ई जगह शिव के विभिन्न रूपों को ईष्ट देवता के रूप में पूजा जाता है। जिस कारण लोगों श्रावण मास के पहले दिन पूरे श्रृद्धा भाव से सबसे पहले अपने आराध्य ईष्ट देवता की आराधना करते हैं। श्रावण मास के पहले दिन काटा जाने वाला हरेला श्रावण संक्रांति से नौ दिन पहले आषाढ़ मास में बोया जाता है। इस हरेले में पांच, सात या नौ प्रकार के अनाज बोए जाते हैं। जिनमें गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों प्रमुख हैं। सूर्य की तेज रोशनी पड़ने के कारण यह अनाज इन नौ दिनों में ही अंकुरित हो जाते हैं।

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