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Uttarakhand bhu kanoon mool niwas
फोटो: सोशल मीडिया

उत्तराखण्ड

देहरादून

उत्तराखंड में फिर उठी भू कानून की आवाज देहरादून में होगी बड़ी रैली, जरूर करें भागीदारी….

Uttarakhand bhu kanoon mool niwas: फिर बड़े जन आंदोलन की राह पर बढ़ रहा उत्तराखण्ड, विभिन्न संगठनों ने दिया समर्थन, लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी सहित अन्य कलाकारों ने भी आम जनमानस से किया देहरादून आने का आह्वान….

Uttarakhand bhu kanoon mool niwas
‘उठा जागा उत्तराखंड्यूं सौं उठाणों वक्त ऐगे…।’ उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाने के बाद राज्य के सुप्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी का यह खूबसूरत जनगीत एक बार फिर लोगों की जुबां पर छाने लगा है। आज बात भले ही पृथक राज्य की नहीं हो रही हों परंतु गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने एक बार फिर अपने इस पुरातन गीत को गुनगुनाकर राज्य के लोगों को एकजुट होने का संदेश दे दिया है। जी हां… लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने इस बार अपने इस गीत के जरिए आम जनमानस से आगामी 24 दिसंबर को राजधानी देहरादून में आयोजित होने वाली मूल निवास स्वाभिमान रैली में एकत्रित होने का आह्वान किया है। आपको बता दें कि उत्तराखंड के विभिन्न राजनीतिक, गैर राजनीतिक संगठन काफी समय से उत्तराखंड में सशक्त भू कानून, मूल निवास 1950 आदि लागू कराने को लेकर आंदोलनरत हैं। उनके इस प्रयास को अब उत्तराखंड के गायकों, कलाकारों के साथ ही विभिन्न छोटे बड़े संगठनों से भी समर्थन मिलने लगा है।
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mool niwas Swabhiman Rally Dehradun
बता दें कि 2024 से ठीक पहले एकाएक बुलंद हो रही इन आवाजों से उत्तराखण्ड के सभी राजनीतिक दलों के माथे पर भी बल पड़ा है। आगामी 24 दिसंबर को देहरादून के परेड ग्राउंड में होने वाली ‘मूल निवास स्वाभिमान महारैली’ को आयोजित करने वाले संगठनों का कहना है कि उनका प्रयास राज्य में मूल निवास कानून 1950 लागू करवाने के साथ ही ऐसा सशक्त भू कानून लागू करवाने का है , जिसमें इस बात का स्पष्ट प्रावधान हो कि उत्तराखंड की जमीनों पर यहां के मूल निवासियों के अधिकार सुनिश्चित और संरक्षित रहें। वैसे उत्तराखण्ड की वर्तमान पुष्कर धामी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही भू कानून को लागू करने पर अपना आश्वासन दे चुकी है परंतु सरकार इसके प्रति कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि करीब डेढ़ वर्षों बाद भी उनका यह दावा कागजों की फाइल से बाहर नहीं निकल पाया है। इसी कारण विभिन्न संगठनों को एक बार फिर आंदोलन की राह पकड़ने के लिए बाध्य होना पड़ा है, जिसे विभिन्न सामाजिक संगठनों का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है।

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