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Uttarakhand news: kharsali to YAMUNOTRI dham ROPEWAY will start soon

उत्तरकाशी

उत्तराखण्ड

उत्तराखंड: यमुनोत्री धाम की यात्रा अब होगी बेहद सुगम, रोप-वे से 3 घंटे का सफर होगा मात्र 9 मिनट में

तीर्थ यात्रियों के लिए अच्छी खबर सिर्फ नौ मिनट में तय होगा खरसाली से यमुनोत्री धाम (Yamunotri Dham) तक का सफर, यात्रा हो जाएगी बेहद सुगम क्योंकि नहीं चढ़नी पड़ेगी खड़ी चढ़ाई….

उत्तराखण्ड की हसीन वादियां जहां देश-विदेश के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है वहीं यहां की पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ ही धार्मिक स्थल देवभूमि की गाथा गाते हैं। विश्व विख्यात चारधाम यात्रा से आज भला कौन वाकिफ नहीं होगा। गंगोत्री, यमुनोत्री (Yamunotri Dham), बद्रीनाथ, केदारनाथ में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। हालांकि पहाड़ के टेढ़े-मेढ़े एवं ऊंचे-नीचे रास्तों के कारण श्रृद्धालुओं को यात्रा के दौरान कठिनाई का सामना भी करना पड़ता है परन्तु अब यमुनोत्री धाम के लिए जल्द ही यह सफर सुगमतापूर्वक संपन्न हो सकेगा। जी हां.. यह संभव हो सकेगा राज्य सरकार के उस प्रोजेक्ट के जरिए जिसके तहत खरसाली से यमुनोत्री तक रोपवे का निर्माण किया जा रहा है। लगभग साढ़े तीन किलोमीटर लम्बे इस रोपवे(Ropeway) के निर्माण से बुजुर्गों एवं महिलाओं को न सिर्फ खड़ी चढ़ाई नहीं चढ़नी पड़ेगी बल्कि उनका यह कठिनतम सफर भी मात्र नौ मिनट में तय हो सकेगा जबकि वर्तमान में इसके लिए लगभग तीन घंटे का वक्त लगता है।
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प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य सरकार देश विदेश के पर्यटकों के लिए पर्यटन स्थलों तक का सफर सुगम बनाने की दिशा में भरसक कोशिश कर रही है। इसके लिए जहां अब तक देहरादून-मसूरी, कद्दूखाल-सुरकंडा देवी, तुलसीगाड- पूर्णागिरि, गौरीकुंड-केदारनाथ, घांघरिया- हेमकुंड साहिब सहित कई अन्य रोपवे परियोजनाओं के निर्माण का खाका तैयार किया गया है बल्कि अब राज्य सरकार ने खरसाली से यमुनोत्री धाम तक रोपवे निर्माण की कवायद भी तेज कर दी है। बता दें कि यमुनोत्री धाम तक पहुंचने के लिए खरसाली से छह किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई तय करनी पड़ती है। वर्ष 2008 में सर्वप्रथम तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा इस मार्ग पर रोपवे निर्माण की योजना बनाई गई इसके लिए टेंडर भी निकाले गए परन्तु सरकार की यह योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी। तत्पश्चात 2010 में पुनः टेंडर आमंत्रित कर रोपवे निर्माण का जिम्मा एक फर्म को सौंपा गया। जिसके लिए चार हेक्टेयर भूमि ग्रामीणों ने पर्यटन विभाग को दी, 2014 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनापत्ति भी जारी कर दी गई परंतु फर्म द्वारा यात्रियों की कम आवाजाही बताकर कार्य करने से इंकार कर दिया था।

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