उत्तराखंड: रोडवेज बस का टूटा शीशा तो बस को 820 किमी दौड़ा कर थोप दिया 40 हजार का बिल
Uttarakhand news roadways bus: गैरजिम्मेदाराना आदेश से हुआ सरकारी पैसे का दुरूपयोग, शीशा लगाने के लिए बिना सवारी 820 किमी दौड़ा दी दो बसें, लगी चालीस हजार की चपत…
अपने हैरतअंगेज कारनामों से अक्सर चर्चाओं का हिस्सा बनने वाली उत्तराखण्ड रोडवेज से आज फिर अजीबोगरीब खबर सामने आ रही है जो न सिर्फ रोडवेज अधिकारियों की गैरजिम्मेदाराना रवैए को बयां करती है बल्कि इससे साफ तौर पर यह संदेश भी स्पष्ट होता है कि रोडवेज के घाटे में जाने का सबसे बड़ा कारण उसके अधिकारी कर्मचारी ही है। मनमाने ढंग से सरकारी धन के दुरूपयोग का इससे बड़ा उदाहरण शायद ही कहीं ओर देखने को मिले। जी हां.. मामला रोडवेज के टनकपुर डिपो का है जहां शीशा न होने की वजह से फिटनेस में फेल हुई दो रोडवेज बसों को डिपो के अधिकारियों ने शीशा लगाने के लिए बसों को बगैर सवारी के देहरादून भेज दिया। जिससे दोनों बसों के आने जाने में करीब 40 हजार रुपये खर्च हुए। हैरानी की बात तो यह है कि रोडवेज के अधिकारियों ने शीशा मंगाने की बजाय रोडवेज की बसों को ही भेजना उचित समझा। जो साफतौर पर फिजूलखर्ची को दिखाता है।
(Uttarakhand news roadways bus)
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प्राप्त जानकारी के अनुसार रोडवेज के टनकपुर डिपो में बस संख्या यूके04पीए 1726 व 1723 में से एक बस का शीशा टूट गया था जबकि दूसरे बस के शीशे में क्रेक था। बताया गया है कि जब बसों को फिटनेस के लिए फोरमैन के पास फिटनेस के लिए भेजा गया तो फोरमैन ने बसों में शीशा लगने के बाद ही फिटनेस करने की बात कही। अब सीजन के समय रोडवेज की बसें डिपो पर खड़ी हो जाए यह बात रोडवेज के अधिकारियों को नागवार गुजरी। यहां तक सब सही भी था क्योंकि बसों के खड़े हो जाने से डिपो की आय प्रभावित होती परन्तु रोडवेज के अधिकारियों ने क्षेत्रीय वर्कशॉप में शीशा मंगाने के बजाय बसों को देहरादून भेजने का निर्णय लिया। जिसके बाद एसएम लेखराज पांगती ने बस नंबर 1726 को 26 अप्रैल और 1723 को 29 अप्रैल को देहरादून भेजा। सबसे बड़ी बात तो यह है कि बसों को देहरादून बिना सवारियों के खाली भेजा गया। जो कि पूर्णतया गलत था। इस बात को रोडवेज के अधिकारी/कर्मचारी भी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं। बसों को खाली भेजने से जहां रोडवेज को हजारों रुपए का नुक़सान हुआ, जिसे सवारियों से किराया वसूल कर बेहद कम किया जा सकता था वहीं शीशा न मंगाने के कारण न सिर्फ बसों को लगभग 820 किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी बेवजह तय करनी पड़ी बल्कि रोडवेज प्रबंधन को चालीस हजार रुपए की चपत भी लग गई।
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