कुमाऊंनी कविता- गौ घर छोड़ बेर जानी प्रदेश….Nidhi Mehra poem
सुनल्यों ईजा, आजेक रात
तुमकु बतुनु मी एक बात
कुमाऊँ गढ़वालैक एकै आषा,
झन भुल्या हमरी भाषा।
आजक एकै छू सवाल
गौ-घरु में हैरों का बवाल।
सबकु चैन हरों दैल फैल
गौं में नूण लागरो अझैल।
कदुक पड़गी गौं घर बाज
भ्यारक आदिम करनो राज
तुम करया एकै काम
सबकु बताया पहाड़ैक दाम
आज कलैक एक कै बातछु
गौंक आदिम अदु हबेरज्यादा भ्यारछू कोई कूनो
काम न्हातिन
तो कोई कनो
सरकारी में नी पढनी नान्तिन
तुमकु चै राज
तो नी करो बाज ! रचना- निधि मेहरा, सल्ला रौतेला, शितलाखेत जिला – अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
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