गढ़वाली कविता- धै लगौन्दा….kailash Upreti komal poem
गौं का गौं वीरान पड़्या ,
अब हमतैं धै लगौन्दा ।
बांजा पड़गिन घर- कुड़ी पुंगड़ी ,
सारु गौं खाण कु औन्दिन ।।
धै लगौन्दा सी चौक डंड्यालि ,
तुमुन ग्वाई लगाई जै मा ।
भूल बिसरी गैनी रीतिरिवाज ,
सी गौं का गौं कख ग्याई ।।
धै लगौन्दा गौं कु पधान कु खौला ,
जख तुमुन चौफला ,लुणबाखरी खेली ।
टक लगै देखण लगी तुमतैं ।
फुलदेही मां फूल धरी जौं देली ।।
उ खेल्यारों की याद नी औन्दी ,
खेली जौं दगड़ी लुकाछिपी गारा ।
चंछलेरों की टोली कख छिन ,
दाना सयणों की आवाज भूल गिन ।।
दादा दादी कू साज चिलम अब ,
आग कु ल्यालु तौं मां ।
जब तुम नी आला घौर त अब ,
फिर कैन बसण इ गौं मां ।।
नौ खम्ब्या तिबरि अर चौक छोड़ी ,
मुनट्वोप मार् या तौ किराया मकान मा ।
ठण्डी हवा अर ठण्डू पाणि छोड़ी ,
उजण लग्यां तै गरम पाणि मा ।।
दिन भर गौं मा अरखलि परखलि घूमी,
व्याखन बगत अब घौर कु आलू ।
सारु गौं मा ओतरा ओतरी ,
दाना सयणों तैं अब खिजालु ।।
सी बाटा अब रोज भट्यांदन ,
कख हर्ची गैनी सी ग्वेर नौना ।
अब किलै नी सुणदिन बांसुली तौं की ,
आखिर तुमतैं खुद किलै नी लागिन गौं की ।।
लवै मण्डै कू मास लगी अब ,
बाटा घाटों मा आस जगी अब ।
दनकण खूब खूट्यों न जौं मा ,
जौं तुमुन बांज कर् याली छौ ।।
फिर कब उ दिन बोड़ी आला ,
जब बीरान पड़्या गौं ।
आबाद ह्वे जाला ।।
रचना- कैलाश उप्रेती कोमल, ग्राम स्यूटा,पो ओ खैनोली,
जिला चमोली (उत्तराखण्ड)
kailash Upreti komal poem
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